हिंदू संस्कृति में देवी-देवता, उनकी पूजा, उनसे जुड़ी मान्यतायें और कहानियों का बहुत महत्व है। अगर बात की जाए गणेश चतुर्थी की, तो मान्यता ये है कि इस दिन भगवान गणेश का जन्मदिन मनाया जाता है।लेकिन इस दस दिवसीय उत्सव में लगता है मानो हम सभी का पुनर्जन्म हुआ है।
गणेश चतुर्थी का उत्साह कुछ दिन पहले से महसूस होने लगता है। पूरा वातावरण एक अद्भुत सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। ये त्यौहार अपार खुशी से भरा होता है। उनके आगमन की तैयारी, सजावट, उनके पसंदीदा मोतीचूर के लड्डू, मोदक की मिठास और आरती के मधुर स्वर मानो हम दस दिनों के लिये एक अलग दुनिया में निवास करते हैं।
क्या कभी आपने गौर किया है, हम जब भी किसी भी गणेश जी की मूर्ति को देखते हैं तो उनकी आँखें मानो हमसे बातें कर रही हो।
उनका पूरा अस्तित्व जीवन का एक उत्सव है और इसे जी भर के आनंद और उल्लास से जीना चाहिये यही संदेश देता है। ये त्यौहार उनका मानव शरीर और पशु चेहरा भी एक दिव्य संदेश है, कि हमें अपने अंदर विद्यमान पशुता पर जीत हासिल कर अपनी मानवता का कर्तव्य भली भाँति निभाना चाहिये। गणेश उत्सव जीवन में सरलता, अनुशासन, आनंद, अपनी कमियों का विसर्जन कर उल्लास से जीवन जीने का संदेश देता है। लेकिन आधुनिकता की दौड़ में और देखा-देखी के इस समय में गणेश उत्सव की चमक में थोड़ी कृत्रिमता आ गई है, जो सही नहीं है। हमारे त्यौहार हमारे सम्पूर्ण अस्तित्व का सुंदर वर्णन है, लेकिन जब ये अपना स्वभाविक रूप खोने लगेंगे तो हमारे अस्तित्व पर भी आँच आने लगती है। हमारी भावी पीढ़ी को हम एक सशक्त समाज और देश के साथ, सशक्त संस्कृति भी दे पाये ,ये हम सभी का कर्तव्य है।
तो आइये इस गणेश चतुर्थी के उपलक्ष्य में प्रण करें कि इन त्यौहारों को सही मायने में सही मानसिकता और सम्पूर्णता से मनाये ताकि ये जीवन का उत्सव ही रहे ना कि इनका क्षरण होता रहे।
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं
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