इंडिया
में हुये अब तक के बदलावों से परे 2020 के दशक का दौर राष्ट्र का राजसिक पुनः जागरण देखेगा। बदलाव की श्रृंखला एक
से शुरू होकर कड़ी बनती है। और सम्पूर्ण बदलाव लाती है। यह दौर एक–एक व्यक्ति और
एक-एक आत्मा के बदलाव की इच्छा का दौर है। जो प्रत्यक्ष रूप से शारीरिक और मानसिक
होगा लेकिन मूल स्त्रोत आध्यात्मिकता होगी।
यह दो बलों में एक संतुलन पैदा करेगा। पहला अभिकेंद्रिय
बल जो केंद्रित होगा राष्ट्रवाद के सिद्धांतो पर, जो सिंचित होगा बौद्धिक प्राचीन
परम्परा से और प्रकाशित होगा आधुनिकता के साथ अपनी आत्मा को भी लिए हुए। वहीं दूसरी
ओर अपकेंद्रिय बल जो इनके पदचिन्हों का विस्तार कर इसे गहरा और मजबूत बनाकर आत्मविश्वास
से लबरेज़ करेगा।
2020 का दशक बदलाव का दशक होगा और यह
बदलाव भारत के हर आयाम में अपना प्रभाव दिखायेगा। यह वो समय है, जब भारत का जीवन
बल निरंतर प्रगतिशील है, एक ऐसे संतुलन की ओर जहाँ देश अपने स्वभाव से प्रेरणा
लेकर अपने स्वधर्म का पालन करेगा।
यह सच है, कि तकनीक से उन्नत्ति व शक्ति पाई जा सकती है।
लेकिन एक बल हमेशा उस तकनीक के पीछे भी काम करता है। चाहे वो खोज आग की हो, कृषि
के क्षेत्र में तकनीकी उपकरण की हो, ऊर्जा, संचार, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस इन सभी
खोजों के पीछे एक-बल, एक-भाव जो मानवता के हित के लिये काम करता है और वो है
“राजसिक बल”।
इसका प्रभाव वास्तविक तौर पर शारीरिक, मानसिक और
भावनात्मक रूप से दिखेगा। लेकिन अवास्तविक रूप से मनस व आध्यात्मिक रूप से दिखेगा।
दर्शनशास्त्र के अनुसार दो अनौपचारिक संस्थाओ का
आस्तित्व है।
पुरुषा
(अप्रगतिशील) और प्रकृति (प्रगतिशील)
प्रकृति तीन तरह
की ऊर्जा/गुण को अपने में समाहित किये हुये है।
1.
तमस
(आलस्य, जडता, इच्छाशक्ति की कमी)
2.
रजस
(सक्रियता, बल, जुनून)
3.
सत्व
(बुद्धिमता, संतुलन)
लगभग 200
वर्षों की गुलामी में भारत धीरे-धीरे तमस की स्थिति में आता गया था।
जबकि भारत की संस्कृति, सभ्यता और ज्ञान का भण्डार सोच से भी परे सम्पन्न है।
तमसिक से राजसिक बदलाव की उम्मीद आज़ादी के बाद थी, शायद
इतने वर्षों की तैयारी के बाद अब हम उस ओर कदम जमा चुके हैं।
भारत के छः बौद्धिक परम्परा (न्याय, वैश्विशिका, संख्या,
योगा, मीमांसा और वेदान्ता)
हैं।
योगा के महत्व के बारे में सदियों से मालूम था लेकिन 11 दिसंबर 2014 को
जब युनाइटेड नेशन्स ने रिशॉल्यूशन 69/191 पास कर 21 जून को अंतराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया। ये पहला कदम था राजसिक भारत की
ओर मुड़ने का।
फिर एक-एक कदम सशक्त भारत की ओर बढ़ने लगा। एक ओर जहाँ
अब हम 3
ट्रिलियन जीडीपी वाले देशों में शामिल होकर अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत कर चुके हैं।
व्यापार की नई-नई नीतियों से और स्वदेशी व आत्मनिर्भर भारत की मुहिम से अपनी जड़ो
को गहराई देने का काम भी कर रहे हैं।
शिक्षा, स्वास्थ्य, रक्षा, तकनीक, उद्योग सभी क्षेत्रों
में आने वाला कल हमारा है। अंदरूनी मजबूती का हल सिर्फ भारत के पास है, योग और
ध्यान की पद्धति से हम अपनी जड़ों को इतना मजबूत करेंगे कि भविष्य की सुनहरी इमारत
आराम से खड़ी रह सके। मानवता, दया, स्पष्टता और मानव के नैसर्गिक गुणों के साथ
भारत प्राचीन और आधुनिकता का श्रेष्ठ मिश्रण है, जो पूरी दुनिया के सामने
प्रगतिशील होने के साथ पूरी मानवता की रक्षा के गुर भी सिखायेगा।