18 मई 2021 को 84 सालों के एक बेहतरीन सफ़र पर पूर्णविराम लग गया I चंद पलो में एक सशक्त व्यक्तित्व यादों में तब्दील हो गया I कोई नहीं जानता कि कब किसके साथ आपका आख़िरी पल है I
आज के दिन मैंने सिर्फ़ अपने पिता को नहीं खोया, बल्कि एक दोस्त, एक गाइड, एक प्रेरणा, एक संबल, एक भरोसा, एक आत्मविश्वास, एक जज़्बा और एक मनोबल को भी खोया I
कहते है एक बेटी अपने पिता के दिल के सबसे क़रीब होती हैं I लेकिन मैं शायद उनके दिल का एक ऐसा अहम हिस्सा थी की न जाने कैसे वो बिना देखे सिर्फ़ फ़ोन पर “हेलो”से मेरे मन को समझ जाते थे I अगर कभी मन बेचैन हो या किसी बात से उदास हो तो,
“हेलो” सुनते ही पूछते थे बेटा, क्या बात है आज तबियत नरम हैं ?
चाहे आप कितना भी अपने भाव को ढकने की कोशिश करे लेकिन वो कुरेद कर बात उगलवा ही लेते थे और उन के आगे मन को खाली कर जो सुकून मिलता था, उसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता था I
बचपन से लेकर आज तक के ढेरों पल मानो एक फ़िल्म की तरह आँखो के सामने चल रहे हो I हर मुस्कुराहट, ठहाके, सीख, उम्मीद, विश्वास कितना ख़ूबसूरत था वो सब I
मिस्टर वी॰ एस॰ चौहान ये नाम और उनका जीवनअपने आप में एक मिसाल रहा है I जिस जीवन संघर्ष में अपने आत्मसम्मान के साथ उन्होंने विजयी पाई थी वो हर किसी के लिये आसान नही था I दो साल की उम्र में अपनी माँ को खोना और 16 साल की उम्र से अपनी तालीम ख़ुद अपने दम पर करना और जीवन में एक ऊँचा मुक़ाम हासिल करना I ऐसे ना जाने कितने ही किस्सेजो उनके जीवन को प्रेरणा की मिसाल बनाता है I
अपने जीवन के सार और अनुभवों से जो अब तक उन्होंने सिखाया था, हमेशा काम आया उनकी सीख एक ऐसे “Quotation” की किताब है कि जब कभी किसी कश्मकश में फँस जाओ तो उस किताब में उनका हल ज़रूर मिल जाता हैं I
किस तरह विपरीत परिस्थितियों में, संघर्षो में टूट कर बिखरने की बजाय पूरी मुस्तैदी से उसका सामना करना और फिर चाहे आप उन मुश्किल पलों मेंअकेले ही क्यूँ ना हो I हिम्मत और ख़ुद पर भरोसा कभी नही छोड़ना, ये एक ऐसी सीख थी जो अमुल्य थी I हम बातों को सुनते और पढ़ते तो बहुत है लेकिन जीवन में उन मुश्किल पलों को जब जीते है तभी असली परीक्षा होती हैI
उनका यूँ अचानक जाना और उसमें सम्भलना मेरे जीवन का कठिनतम दौर था लेकिन मैंने उनकी उपस्थिति हर पल महसूस की I पता नही कहाँ से इतनी हिम्मत और ठहराव आया मानो वो जाते हुये अपनी सीखो कीऔर परवरिश की परीक्षा लेना चाहते थे I मुझे उमीद है की शायद मैंने आप को निराश नहीं किया पापा I
ये सोच कर भी मन भर आता है की अब वो बातें, वो मुलाकातो का वक़्त सिर्फ़ यादों में ही सीमित होगा I अजीब सा एहसास है की आज फादर्स डे पर पापा को विश करने के बजाय उनकी स्मृतियों से बातें हो रही है I वैसे तो माता – पिता के लिए कोई दिन तय नही होता उनके होने से ही हमारा वजूद है I
आज तक़रीबन 1माह हुआ है जब वो शारीरिक रूप से हमारे पास नहीं है लेकिन एक पल को भी नहीं लगा की वो नहीं है, मानो वो हमारे साथ है और हमेशा की तरह यू ही साथ रहेंगे I
आज हरिवंशराय बच्चन की कविता, “माता- पिता कहीं नही जाते….” की गहराई समझ पा रही हुँ I
पापा का कहा एक वाक्य हमेशा मेरे ज़हन में ताज़ा रहता है,
“इंसान के रूप में इस दुनिया में आये हो तो कुछ ऐसा करो की ख़ुद गर्व कर सको, वरना जीते तो कीड़े और जानवर भी है I”
ज़िंदगी को अब और सही मायनो में सार्थक बनाने के लिए हर कोशिश आपको सच्ची श्रद्धांजलि होगी I आप हर वक़्त मेरे साथ है इसका एहसास मुझे खुली आँखो से भी होता है, लव यू पापा I