by Dr Kirti Sisodia
Read Time: 1 minuteUnlockdown की प्रक्रिया हमारे देश में जारी है। हम सभी फिर से अपनी-अपनी जिंदगी में मसरूफ हो चुके हैं। लॉकडाउन के दौरान अपनी कॉलोनी में रोज़ाना शाम को वॉक करते हुए, स्ट्रीट डॉग्स को कुछ खाने को देना आदत में शुमार हो चुका था। रोज़ शाम को वो स्ट्रीट डॉग्स भी इंतज़ार करते, देखते ही पीछे-पीछे आने लगते और खाने में व्यस्त हो जाते। भले ही वो खाना दिन भर के लिए पर्याप्त नहीं हो, लेकिन उनकी आँखें जैसे लाखों धन्यवाद देती हों। उन आँखों का वार्तालाप एक सुकून-सा देता रहा हैं।
जब से लॉकडाउन हटा, अपने ऑफिस के कामों में इतने व्यस्त हुए की कई दिनों तक वॉक नहीं हुई। जब वॉक पर नहीं जा रहे थे, तो कुछ दिन तक स्ट्रीट डॉग्स के लिए स्टाफ्स के हाथों खाना भिजवाया, फिर व्यस्तता में कुछ दिन भूल भी गए।
बहुत दिनों बाद कल शाम जब वॉक पर निकले, तो देखा एक आदमी उन स्ट्रीट डॉग्स को कुछ खिला रहा था। मन खुश हुआ की वे भूखे नहीं रह रहे हैं। अगले दिन फिर जब वहां से गुज़रे और थोड़ा नज़दीक से देखा तो, वो आदमी बहुत ही साधारण दिख रहा था। वो बहुत प्यार से उन्हें सहला रहा था, मानो बातें कर रहा हो। उनसे जेब टटोली और 20 रूपए का नोट निकाला। बाकि जेबों को भी टटोला तो पाया की उसके पास सिर्फ 20 रूपए थे। उसने नोट को देखा, कुछ सोचा, फिर हलकी सी मुस्कान से पास की दूकान से वो बिस्कुट के पैकेट ख़रीदे। और बहुत प्यार से स्ट्रीट डॉग्स को वो बिस्कुट खिलाया, फिर अपनी साइकिल पर सवार हो कर बहुत ही संतोष और खुश मन से वहां से चला गया।
ख़ुशी और संतुष्टि की नई परिभाषा आज उस व्यक्ति ने सिखाई। यही नहीं, जो कुछ भी आपके पास है, अगर वो आप दुसरो के ख़ुशी के लिए न्योछावर करने का हौसला रखते हैं, तभी सच्ची संतुष्टि का अनुभव कर सकते हैं। इस घटना ने जीवन के कई पहलुओं को कई नए दृष्टिकोण से अनुभव करने का सबक सिखाया।
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