भारतीयों ने अपने अधिकार के लिए एवं भारत को एक आज़ाद देश बनाने के लिए डट कर लड़ाई लड़ी। यह बात हमे बताने की ज़रूरत नहीं है कि हर लिंग, हर उम्र के लोगों के सहयोग से ही आज भारत एक आज़ाद और आत्मनिर्भर देश कहलाता है।
वर्ष 1498 में वास्को डी गामा पहले यूरोपियन थे जिन्होंने लंबी यात्रा कर भारत आने का समुद्री रास्ता ढूंढ लिया था। पुर्तगालियों ने वास्को डी गामा की सहायता से भारत में प्रवेश किया और एक नया व्यापार मार्ग खोजा। पुर्तगालियों ने बीस वर्षों के अंदर ही हिंद महासागर पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया। पांच साल बाद, कोचीन में उन्होंने अपना पहला किला बनाया।
रानी अब्बक्का चौटा
भारत की सबसे पहली स्वतंत्रता सेनानी थी रानी अब्बक्का चौटा। रानी अब्बक्का तुलुनाडू (कर्नाटक) की पहली तुलुवा वंश की रानी थी जिन्होंने कई लड़ाइयों में पुर्तगालियों का सामना करके उन्हें पराजित किया। वह एक अदम्य साहसी और देशभक्त महिला थी जिन्हें बचपन से ही एक अच्छा शासक बनने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। उन्होंने तलवार चलाना, तीरंदाजी, सैन्य रणनीतियां, कूटनीति और अन्य विषयों पर महारत हासिल कर ली थी। उन्होंने हर उस विषय में कुशलता हासिल की, जो राज्य चलाने के लिए आवश्यक थी।
पुर्तगालियों से सामना
रानी अब्बक्का का एक छोटा-सा साम्राज्य, उल्लाल, भारत के पश्चिमी तट पर स्थित था। पुर्तगालियों द्वारा गोवा पर कब्ज़ा करने के बाद उनका ध्यान रानी के उल्लाल ने आकर्षित किया। पुर्तगालियों ने उल्लाल को हासिल करने के कई प्रयास किए, परंतु लगभग चार दशकों तक अब्बक्का ने उन्हें हर बार परास्त कर दिया। रानी के होते हुए उल्लाल में पुर्तगालियों का व्यापार कर पाना नामुमकिन था। रानी ने पुर्तगालियों की हर मांग को नकार दिया। इसी वजह से पुर्तगालियों ने रानी के जहाजों पर हमला किया। लिहाज़ा, 1556 में पुर्तगालियों और रानी अब्बक्का के बीच पहली लड़ाई हुई। रानी अब्बक्का ने अपनी कुशल युद्ध रणनीति से पुर्तगालियों को पराजित कर दिया। एक के बाद एक पुर्तगालियों ने रानी पर 8 हमले किये लेकिन उन्हें एक बार भी विजय प्राप्त नहीं हुई ।
8 हमलों का बदला
एक रात रानी ने अपने 200 वफ़ादार सैनिकों के साथ मिलकर पुर्तगालियों के कैंप पर हमला किया। रानी की सेना ने जनरल सहित 70 सैनिकों को मार गिराया। इस हमले के बाद शेष पुर्तगाली सैनिक अपने जहाजों में सवार होकर भाग गए।
शौर्य के जवाब में किया विश्वासघात
रानी अब्बक्का की निरंतर जीत को देख कर पुर्तगाली चिंतित हो उठे। अब विश्वासघात करना ही उन्हें जीत हासिल करने का एकमात्र तरीका लगा। उन्होंने रानी के खिलाफ़ एक रणनीति बनाई जिसके मुताबिक वे उल्लाल पर अचानक हमला करेंगे। एक दिन रानी अपने परिवार सहित मंदिर की यात्रा से लौट रही थीं। उन्हें पुर्तगाली सैनिकों ने धोखे से घेर लिया।
लेकिन निडर रानी ने पुर्तगालियों से अपनी अंतिम सांस तक उनसे युद्ध किया। रानी के बाद, उनकी बहादुर बेटियों ने पुर्तगालियों से तुलु नाडू की रक्षा जारी रखी।
16वीं सदी की इस वीरांगना की याद में कर्नाटक में एक म्युज़ियम का निर्माण किया गया है। तो वहीं दक्षिण कर्नाटक में उनके स्मरण में वीर रानी अब्बक्का उत्सव मनाया जाता है।
भारतीय इतिहास ऐसी वीरांगनाओं की शौर्य गाथाओं से भरा हुआ है।