बीते साल ने हमें ना सिर्फ घरों में रहना, अपने परिवार के साथ रहना और कम संसाधनों में जीना सिखाया, बल्कि मेल-मिलाप, साथ ख़ुशियाँ बांटना, त्यौहार के रंग, हर्षोल्लास, और साथ हंसी ठहाके के मायने भी समझा गया।
भारत जो कि विविधता में एकता वाला देश है, जहाँ मानो हर दिन एक उत्सव है। हम भाग्यशाली है कि लगभगसालभर कोई ना कोई त्यौहार अपनी दस्तक देते रहता है । जनवरी की शुरुआत होती है मकर संक्रांति से। इस त्यौहार को मानाने के पीछे एक स्पष्ट धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पृष्ठ भूमि है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण की अवधि देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात्रि है। वैदिक काल में उत्तरायण को ‘देवयान’ तथा दक्षिणायन को ‘पितृयान’ कहा जाता था। कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन यज्ञ में दिये हुये द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं।
सूर्य देवता भी अपनी दिशा इसी दिन पर बदलते हैं । सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश संक्रांति कहलाता है। सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होने लगता है। यह पर्व ऋतु परिवर्तन की दृष्टी से भी अपने महत्व को प्रतिपादित करता है। ऋतु परिवर्तन से होने वाले प्रमुख लाभ स्वास्थ व फसलों के हैं। सूर्य की चाल बदलने से फसलों की बुवाई शुरू होती है।
भारतवर्ष में शायद यही एक ऐसा त्यौहार है जो लगभग सभी प्रांतों में लेकिन अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा में लोहड़ी, असम में बिहू, दक्षिण भारत में पोंगल, और अन्य समस्त प्रांतों में मकर संक्रांति। गुजरात में तो इस दिन पूरा आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से सजा होता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान राम ने भी पतंग उड़ाई थी। सूर्य के उत्तरायण होने तथा मकर राशि में प्रवेश के कारण उनका स्वागत पतंग उड़ाकर किया जाता है। आंतरिक श्रद्धा भाव तथा आनंद की अभिव्यक्ति भी की जाती है। अन्य भारतीय त्यौहारों की तरह मकर संक्रांति का पर्व अपनी पौराणिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक महत्व के कारण हमारे देश में मनाया जाता है। इस दिन “तिल” का विशेष महत्व है। तिल आयुर्वेद की दृष्टी से रक्त के प्रवाह को तीव्र बनाने में मददगार होता है।
कैल्शियम प्रचूर मात्रा में तिल में पाया जाता है। जब यह गुड़ के साथ खाया जाता है तो सर्वाधिक लाभ मिलता है। इस त्यौहार से शारीरिक स्वास्थ के प्रति सचेत होने का सन्देश और ऋतु परिवर्तन के साथ नयी फसलों की उत्पत्ति एवं संपन्नता का देश तो मिलता ही है। लेकिन इस साल यह सन्देश भी यह पर्व देता है कि हर अँधेरे के बाद सवेरा होता है। जनवरी माह में कोरोना वैक्सीन का आना इस बात का घोतक है। नयी शुरुआत का स्वागत पूरी उमंग, दृढ़ता और संकल्पों के साथ हो चूका है। और पूरी उम्मीद के साथ कि ये निरंतरता बनी रहेगी, आप सभी को मकर
संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।